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हारने के बाद

  हारने के बाद,  इंसान अक्सर,  याद करता है अपना सफ़र,  और लौट जाना चाहता है,  जहां से राह शुरू हुई!  कुछ लौट जाना चाहते हैं,  ताकि रास्ता बदल पाएं!  और कुछ लौटते हैं,  फिर से संघर्ष करने,  ताकि उसी रास्ते,  मंजिल तक पहुंचे,  जो रास्ता चुना था ! ... Durga

तुम भुलाए नहीं जा सकते

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  अधूरी ख्वाहिशों,  टूटे सपनों,  और छूटे हुए अपनों,  तुम भुलाए नहीं जा सकते कभी भी,  क्यूँकि तुम पर ही तो लिखी जाती है,  दुनियां की बेहतरीन कविताएं, कहानियाँ, गीत और गज़ल! ... Durga

कभी कभी

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  कभी कभी,  सिर्फ महसूस करना,  शामिल होने से,  बेहतर होता है!  शायद इसीलिए,  हमने भी, बहुत दूर से,  छुप छुप कर देखा है,  कई बार,  जिंदगी तेरे कई रंगों को! ... Durga

माँ तुम और नैनीताल का मौसम

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माँ तुम और नैनीताल का मौसम,  मेरे बहुत करीब हो!  तुम सर्दी की गुनगुनी धूप सी हो कभी,  और कभी जून की किसी शाम,  माल रोड में चिनार के पेड़ों को छूंकर , बहती ताजी हवा सी लगती हो!  कभी बरसातों की ठंडक हो,  कभी  फागुन के रंग में रंगी प्रकृति का रूप हो!  माँ तुम और नैनीताल का मौसम  जैसे एक दूसरे को अच्छे से समझते हो!  याद है मुझे,  जब बरसातों में लगातार बारिश के बाद,  कुछ धूप निकलती थी,  तब सुबह से शाम जाने कितने दिनों तक तुम,  घर के सारे रज़ाई कंबल,  सब बारी बारी से धूप में डालती थी,  ताकि सीलन की अजीब गंध दूर हो सके!  दिन भर थका देने वाले इस काम के बाद,  जो नींद तुम्हारी वजह से मिलती थी ना,  वो अनमोल थी!   आज जब मुझे मालूम पड़ा  कि कई दिनों की बारिश के बाद धूप आई है,  तब मैं समझ गई कि,  आज तो नैनीताल में तुम्हारे लिए,  चौमास में असोज लगा होगा! और आज मैं फिर से नरम एहसास को महसूस कर, बचपन वाली अच्छी नींद सो जाऊँगी! ... Durga

साँझ के उस एक पल में!

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 दूर जब कहीं सूरज डूब रहा हो,  तब उसे देखते हुए हम,  मन के पंखों को फैला कर,  दूर कहीं निकल जाते हैं!  जब धरती और आसमान  एक ही बिन्दु पर टिके से दिखते हैं,  तब हम भी बीते हुए पलों,  और आने वाले समय को,  एक साथ जोड़ लेते हैं !  जैसे सब कुछ मन से शुरू हो कर,  मन में ही ठहर सा गया हो!  जब एक ही रंग में,  रंग गई हो  बाहर और अंदर की दुनियां,  तब  हर तरह के कोलाहल से दूर,  कितना शांत हो जाता है मन,  साँझ के उस एक पल में!

लौट चलें

  जहां पंछी सुबह जगाते हैं  जहां नदियां- झरने शोर मचाते हैं जहां गीत गाते हैं जंगल  जहां आवाज लगाते हैं बादल आ चल, लौट चलें वहाँ  जहां से मौसम हमें बुलाते हैं...  आ चल, लौट चलें वहाँ  जहां से चले थे...  जहां अब भी सादगी है जीवन में  जहां अब भी भोलापन है सीरत में  जहां दुख में भी सब अपने हैं  जहां लोग बेगाने कोई नहीं  आ चल, लौट चलें वहाँ  जहां से पर्वत हमें बुलाते हैं..  आ चल, लौट चलें वहाँ  जहां से चले थे... 

मौसम मेरे शहर का

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  बड़ा ही बेमिसाल, बड़ा सुहाना है, मौसम मेरे शहर का, एक पुराना, गुजरा ज़माना है,  मौसम मेरे शहर का,   कोई बीती हुई बात, या किस्सा है, मौसम मेरे शहर का,  मेरी जिंदगी का, जैसे हिस्सा है, ये मौसम मेरे शहर का!