जीवन बस दो दिन का मेला रे


धूप और छाँव का खेला रे
जीवन बस दो दिन का मेला रे
बढ़ते जाओ चलते जाओ
मजदूर का जैसे ठेला रे

थकना तो भी रुकना ना
हारना तो भी डरना ना
सांसों की डोर पर धड़कन का रेला रे
जीवन बस दो दिन का मेला रे

मिलना बिछड़ना,
बिछड़ के मिलना
जैसे मौसम बदले चोला रे
जीवन बस दो दिन का मेला रे

... Durga

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जिंदगी का कोई भरोसा नहीं

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