Tuesday, March 12, 2019

जीवन बस दो दिन का मेला रे


धूप और छाँव का खेला रे
जीवन बस दो दिन का मेला रे
बढ़ते जाओ चलते जाओ
मजदूर का जैसे ठेला रे

थकना तो भी रुकना ना
हारना तो भी डरना ना
सांसों की डोर पर धड़कन का रेला रे
जीवन बस दो दिन का मेला रे

मिलना बिछड़ना,
बिछड़ के मिलना
जैसे मौसम बदले चोला रे
जीवन बस दो दिन का मेला रे

... Durga

2 comments:

shankar singh bhandari said...

जिंदगी का कोई भरोसा नहीं

Durga said...

Sach kaha

हाइकु सफ़र

    कहां मंजिल     है किसको खबर      लंबी डगर ****'' '' '********' '' '' '' *********'...