साँझ के उस एक पल में!
दूर जब कहीं सूरज डूब रहा हो,
तब उसे देखते हुए हम,
मन के पंखों को फैला कर,
दूर कहीं निकल जाते हैं!
जब धरती और आसमान
एक ही बिन्दु पर टिके से दिखते हैं,
तब हम भी बीते हुए पलों,
और आने वाले समय को,
एक साथ जोड़ लेते हैं !
जैसे सब कुछ मन से शुरू हो कर,
मन में ही ठहर सा गया हो!
जब एक ही रंग में,
रंग गई हो बाहर और अंदर की दुनियां,
तब हर तरह के कोलाहल से दूर,
कितना शांत हो जाता है मन,
साँझ के उस एक पल में!
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