लौट चलें
जहां पंछी सुबह जगाते हैं
जहां नदियां- झरने शोर मचाते हैं
जहां गीत गाते हैं जंगल
जहां आवाज लगाते हैं बादल
आ चल, लौट चलें वहाँ
जहां से मौसम हमें बुलाते हैं...
आ चल, लौट चलें वहाँ
जहां से चले थे...
जहां अब भी सादगी है जीवन में
जहां अब भी भोलापन है सीरत में
जहां दुख में भी सब अपने हैं
जहां लोग बेगाने कोई नहीं
आ चल, लौट चलें वहाँ
जहां से पर्वत हमें बुलाते हैं..
आ चल, लौट चलें वहाँ
जहां से चले थे...
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