Monday, April 22, 2019

अर्थ डे

चलिए अर्थ डे मनाते हैं
कैसे..??
अरे वैसे ही जैसे साल भर
सारे त्योहार और खुशियों के अवसर मनाते हैं
सबसे पहले एक दूजे को
"हैप्पी अर्थ डे" कह कर अपना फर्ज़ निभाते हैं

फिर....
घर की सफाई करते हैं
बाहर गन्दगी फैलाते हैं
थोड़ा खिड़कियां फर्श और गाड़ियां चमकाते हैं
और बहुत सारा पानी बहाते हैं
चलिए अर्थ डे मनाते हैं
तेज आवाज में डी जे जाते हैं
बहुत सारे पटाखे चलाते हैं
धूम मचाते पार्टी करते हैं
और इधर उधर कूड़ा छुपाते हैं
चलिए अर्थ डे मनाते हैं
हर जगह रंग बिरंगी लाइट सजाते हैं
जरूरत हो ना हो पर
पंखा ए. सी. , कूलर का भी
इन्तेजाम पक्का करते हैं
चलिए अर्थ डे मनाते हैं
देखो ये ध्यान रहे
खाने पीने का पूरा समान रहे
कपड़े की थैली लगती पुराने जमाने की
इसलिए सब कुछ पॉली पैक में सुरक्षित रहे
चिंता की कोई बात नहीं
पॉलिथीन के लिए खाली मैदान बहुत पड़े हैं
चलिए अर्थ डे मनाते हैं
पिछली बारी पेड़ पौधे कब लगाए
ये याद करके क्यूँ अपना वक़्त बरबाद करें
इस बार तो ऋषिकेश में गंगा किनारे
कुछ हुल्लड़बाजी करते हैं
दो दो घूँट लगाकर
बोतल वहीं छुपाते हैं

चलिए अर्थ डे मनाते हैं
... कैसे???? 😢

... Durga

Wednesday, April 17, 2019

सब लिखो


वही देखो जितने से,
खुद को खुशी मिले!
फिर चाहे अनदेखा किया हुआ,
कितने ही दुख में क्यूँ ना हो!
उतना ही सुनो,
जितना तुम्हारे लिए फायदे का हो!
फिर चाहे अनसुना किया हुआ,
कितनी ही बार मदद को पुकारे!
उतना काम अपने लिए करो,
जितने से खुद की जीत हो,
फिर चाहे हारने वाला,
अपना ही क्यूँ ना हो!
बस खुद को केंद्र में रखो,
फिर चाहे चारों ओर,
हाहाकार या चीख पुकार क्यूँ ना!
देखा अनदेखा, सुना अनसुना,
सब लिख लो,
धरती का रोना,
समाज का सोना,
बच्चों के लिए महान विरासत का,
केवल छोटा कोई कोना,
सब लिखो...
सबका सुंदर छायांकन करो,
किताबों के किसी पन्ने पर,
अखबारों के छोटे से मुड़े हुए किनारे पर,
छाप सको उतना समेटो,
और मुक्त हो जाओ,
सभी जिम्मेदारियों से....!

...Durga

Wednesday, April 10, 2019

एक था एकलव्य

द्रोणाचार्य को गुरु मानकर केवल उनकी मूर्ति के सानिध्य में स्वयं लगन मेहनत से जिसने धनुर्विद्या में कुशलता हासिल कर ली वो था एकलव्य!

भील पुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने जिसको धनुष विद्या सिखाने से मना कर दिया मगर योद्धा जाती से नहीं लगन और कर्म से बना जा सकता है ऐसा सिद्ध करने वाला था एकलव्य!

कौरवों और पांडव राजकुमारों के कुत्ते का मुंह अपने तीरों से बिना घायल किए बंद कर देने वाला ऐसा एकाग्र मन वाला वीर था एकलव्य!

द्रोणाचार्य ने मानस गुरु होकर भी गुरुदक्षिणा में जब अंगूठा मांग लिया तो अंगूठा कट जाने पर तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों से तीर चलाने में दक्ष जो हुआ वो था एकलव्य!

संभवतः आधुनिक युग में तीरंदाजी जिस तरह की जाती है उसका जनक था एकलव्य!

... Durga








Thursday, April 4, 2019

वक्त गुज़र जाता है


वक्त गुज़र जाता है,
पर वक़्त अकेला कभी नहीं जाता,
साथ ले जाता है
अच्छे, बुरे लम्हें
मीठी, कड़वी
सच्ची, झूठी
कई बातें...

वक़्त अकेला कभी नहीं जाता,
साथ ले जाता है
आँखों में बसे सपने
 सफर के साथी
 अपने, बेगाने
 कई रिश्ते...

वक़्त गुज़र जाता है,
पर दे जाता है
खुशियां, गम
अनुभव, यादें
सिखा जाता है
जीने की कला!


Durga

हाइकु सफ़र

    कहां मंजिल     है किसको खबर      लंबी डगर ****'' '' '********' '' '' '' *********'...