एक था एकलव्य

द्रोणाचार्य को गुरु मानकर केवल उनकी मूर्ति के सानिध्य में स्वयं लगन मेहनत से जिसने धनुर्विद्या में कुशलता हासिल कर ली वो था एकलव्य!

भील पुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने जिसको धनुष विद्या सिखाने से मना कर दिया मगर योद्धा जाती से नहीं लगन और कर्म से बना जा सकता है ऐसा सिद्ध करने वाला था एकलव्य!

कौरवों और पांडव राजकुमारों के कुत्ते का मुंह अपने तीरों से बिना घायल किए बंद कर देने वाला ऐसा एकाग्र मन वाला वीर था एकलव्य!

द्रोणाचार्य ने मानस गुरु होकर भी गुरुदक्षिणा में जब अंगूठा मांग लिया तो अंगूठा कट जाने पर तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों से तीर चलाने में दक्ष जो हुआ वो था एकलव्य!

संभवतः आधुनिक युग में तीरंदाजी जिस तरह की जाती है उसका जनक था एकलव्य!

... Durga








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