तृतीय ज्योतिर्लिंग महाकाल या ‘महाकालेश्वर’
तृतीय ज्योतिर्लिंग महाकाल या ‘महाकालेश्वर’ -
यह स्थान मध्य प्रदेश के उज्जैन में है, जिसे प्राचीन काल में उज्जयिनी, इसे अवंतिकापुरी भी कहते थे। यह भारत की सप्तपुरियों में से एक है।यह सभी ज्योतिर्लिंगों में अकेला दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है।
इस ज्योर्तिलिंग की दो कथाएं प्रचालित हैं। पहली कथा ये है कि... प्राचीनकाल में उज्जयिनी में परम शिव भक्त, राजा चंद्रसेन राज करते थे। राजा प्रतिदिन की तरह शिवपूजा में लीन थे, तभी श्रीकर नामक ग्वाल बालक उधर से गुजरा। राजा का शिवपूजन देखकर उसे बहुत आश्चर्य और जिज्ञासा हुई। वह स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिवपूजन करने की सोचने लगा। गरीब होने के कारण वही सारी सामग्री नहीं जुटा सकता था तो उसने घर जाते समय एक पत्थर उठाया। घर आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प, चंदन से श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने लगा। माँ ने भोजन करने के लिए आवाज लगाई पर पूजा में ध्यान मग्न होने के कारण बालक ने माता की आवाज नहीं सुनी। जब बार बार पुकारने पर भी बालक नहीं आया, तब माता ने क्रोधित होकर पत्थर का वह टुकड़ा उठाकर फेंक दिया। इससे बालक बहुत दुखी हुआ और भगवान् को पुकार कर रोने लगा। बालकप यह निश्छल भक्ति और प्रेम देख कर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। बालक ने देखा उसके सामने एक बहुत ही भव्य स्वर्ण, रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है। उस मंदिर के अंदर एक प्रकाशपूर्ण ज्योर्तिलिंग है। श्रीकर आनंद से विभोर होकर भगवान शिव की पूजा स्तुति करने लगा। माता ने यहा समाचार पाकर बालक को गले से लगा लिया। राजा चंद्रसेन ने भी श्रीकर की प्रसंसा की।
दूसरी कथा इस प्रकार है... किसी समय अवंतिकापुरी में तेजस्वी ब्राह्मण रहते थे। दूषण नामक एक अत्याचारी असुर जिसे ब्रह्म ने वरदान दिया था जिस से वो बहुत शक्तिशाली हो गया था, ब्राह्मण की तपस्या में विघ्न डालने के लिए वहां आया। ब्राह्मण को कष्टों में देख शिव ने एक हुंकार मात्र से उस अत्याचारी को वहीं जलाकर भस्म कर दिया। भगवान वहां हुंकार सहित प्रकट हुए इसीलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया। इसीलिए इस ज्योर्तिलिंग को ‘महाकाल’ के नाम से जाना जाता है।
ॐ नमः शिवाय
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