समंदर की लहरों सा मन
मन भी समंदर की लहरों सा, बार बार मचलता है, खुशियां पाने को ! बार बार आगे बढ़ती हैं जो लहरें, पत्थरों से टकराकर लौट जाती हैं, खो जाती हैं,फिर अपने आप में, गुम हो जाती है उसकी चंचलता पल भर के लिए, मगर शांत नहीं होती, निरंतर मचलती रहती हैं आगे बढ़ने को! मन भी खुशियों की तलाश में, बढ़ता रहता है कई दिशाओं में, फिर लौट आता है, और खो जाता है अपने आप में ! मगर सोच के धागों से, बुनता रहता है निरंतर सपने ! कभी जब उदासी का साया घेर लेता है मन को, नज़र में हो मंजिल, पर राह न मिले, जब ज़िन्दगी में हर सपना टूटने लगे, मन हमारा हमें ही कोसने लगे, तो कई बार तोड़ डालता है ये दीवारों को, पार कर जाता है सारी ऊंचाइयों को, तोड़ देता है सारे बन्धन, जैसे लहरें उठती हैं कई बार, तूफ़ान बनकर, और पीछे छोड़ जाती हैं, एक ख़ामोशी ! ... Durga