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Showing posts from July, 2020

जिंदगी ( life)

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जहां कदर नहीं वहाँ वास्ता भी रखना क्या,  जहां उम्मीद नहीं वहाँ रास्ता भी तकना क्या!  चाहते हो अगर मंजिल, जिंदगी के सफ़र में,  तो मुर्दादिल लोगों को साथ भी रखना क्या!  ... Durga

अच्छा है

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कुछ बातों का दिल में ही छुपे रहना अच्छा है,  कुछ सपनों का आँखों में ही सजे रहना अच्छा है!  लग जाती है उनको ज़माने की नज़र अक्सर,  जो कहते हैं ज़माने की नज़र में बने रहना अच्छा है! तसल्ली के लिए कि हर कोई पत्थर दिल नहीं होता,  बेफ़िक्र दुनियां में कुछ फिक्रमंद बने रहना अच्छा है!  बेमतलब के रौब दिखा कर बनते हैं सयाने यहां,  कुछ दिन ही सही मासूम बच्चा बने रहना अच्छा है!  मालूम है ज़मीं पर बिखरना है हर फूल को एक दिन,  ऐसे खिलने के लिए कांटों से उलझते रहना अच्छा है! कुछ दौर चल पड़ा है झूठ का हर तरफ इस कदर  अब सच का हर जगह ज़ाहिर न रहना अच्छा है! ... Durga

यादें ( memories)

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यादें कहाँ  किसी को, कभी तन्हां छोड़ती हैं,  लाख कोशिश करो, अपनी ही तरफ़ मोड़ती हैं!  ... Durga

ज़माना

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द्वितीय ज्योतिर्लिंग.. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

द्वितीय ज्योतिर्लिंग... मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: आन्ध्र प्रदेश   आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं! पार्वती जी का नाम मल्लिका देवी भी है और शिव जी का नाम अर्जुन है! इसलिए इस स्थान का नाम मल्लिकार्जुन पड़ा!  इसके पीछे की कहानी यह है कि गणेश और कार्तिकेय दोनों चाहते थे कि उनका विवाह पहले हो, इसी विवाद को सुलझाने के लिए एक बार भगवान शिव ने कार्तिकेय और गणेश को कहा कि जो पृथ्वी का चक्कर सबसे पहले लगा कर आएगा उसका विवाह पहले किया जाएगा! अब कार्तिकेय तो निकल पड़े यात्रा पर परंतु गणेश जी मोटे शरीर की वजह से नहीं जा पाए लेकिन उन्होने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और अपने माता पिता अर्थात भगवान शिव और पार्वती के चारों तरफ साथ चक्कर लगा लिए! इस से शिव पार्वती प्रसन्न हुए और उन्होने गणेश जी का विवाह रिद्धि सिद्धि के साथ कर दिया! कार्तिकेय ने वापस लौट कर य‍ह देखा तो वे नाराज हो कर कौंच पर्वत पर चले गये। शिव पार्वती उन्हे मनाने वहां पहुँचे किन्तु उनके आने का समाचार सुनकर वहां से भी चले गये! कौंच पर्वत

तृतीय ज्योतिर्लिंग महाकाल या ‘महाकालेश्वर’

तृतीय ज्योतिर्लिंग महाकाल या ‘महाकालेश्वर’ -  यह स्थान मध्य प्रदेश के उज्जैन में है, जिसे प्राचीन काल में उज्जयिनी, इसे अवंतिकापुरी भी कहते थे। यह भारत की सप्तपुरियों में से एक है।यह सभी ज्योतिर्लिंगों में अकेला दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है।  इस ज्योर्तिलिंग की दो कथाएं प्रचालित हैं। पहली कथा ये है कि... प्राचीनकाल में उज्जयिनी में परम शिव भक्त, राजा चंद्रसेन राज करते थे। राजा प्रतिदिन की तरह शिवपूजा में लीन थे, तभी श्रीकर नामक ग्वाल बालक उधर से गुजरा। राजा का शिवपूजन देखकर उसे बहुत आश्चर्य और जिज्ञासा हुई। वह स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिवपूजन करने की सोचने लगा। गरीब होने के कारण वही सारी सामग्री नहीं जुटा सकता था तो उसने घर जाते समय एक पत्थर उठाया। घर आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प, चंदन से श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने लगा। माँ ने भोजन करने के लिए आवाज लगाई पर पूजा में ध्यान मग्न होने के कारण बालक ने माता की आवाज नहीं सुनी। जब बार बार पुकारने पर भी बालक नहीं आया, तब माता ने क्रोधित होकर पत्थर का वह टुकड़ा उठाकर फेंक दिया। इससे बालक बहुत दुखी हुआ और भगवान् को पुका