तुझे जितना पढ़ती हूं, तू उस से ज्यादा समझाती है... जितना लिखती हूँ, उस से ज्यादा सिखाती है... फ़िर भी ऐ ज़िन्दगी तेरी किताब हमेशा अधूरी सी क्यूँ लगती है...
खामोशियों की अपनी जबान होती है... जिनको हर कोई समझ नहीं सकता... और जो समझ जाए उस से बेहतर आपको कोई और समझ नहीं सकता.. ऐसे ही तो तुमने भी समझी थी एक दफा खामोशी मेरी... बस उसी एक पल में सिमट कर रह गई दुनियां मेरी...यूँ तो कई बार शिकायतें भी करती रही कि कहाँ समझ पाए मुझे तुम मगर तुम्हारा उस एक पल का समझना हमेशा भारी पड़ता रहा मेरी तमाम शिकायतों पर...इसलिए ही शायद खामोशियों से शुरू हुई मुहब्बत मेरी हमेशा खामोश ही रही... सच खामोशियों की अपनी जबान होती है...