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Showing posts from August, 2019

देखके दुनियां का सलीका

देखके दुनियां का सलीका,  हमने शिकायत करना छोड़ दिया!  जिसे समझा खुद से बेहतर,  उस से भी हर नाता तोड़ दिया!  देखो सच को झूठा करने वालों,  और उठे हुए को गिराने वालों,  हमने अब तुम्हारी महफ़िल में भी,  नगमें गाना छोड़ दिया! ...Durga

Shayari mood

उस नज़र से भी नज़ारे देखे, जो नज़र तुम्हें प्यारी थी,  उस डगर में भी किनारे देखे, जो डगर सिर्फ तुम्हारी थी!  अब शायद ना होगा सफ़र सुहाना, इतना समझ लीजिए,  हमने हर बात में जज़्बात देखे, ये कलाकारी भी तुम्हारी थी!  ****************************************** सच तो ये भी है ज़माने में,  रिश्ते टूट जाते हैं आज़माने में।  सवाल ये है कि अपना कहें किसे,  अपने तो मिलते हैं बस अफ़साने में। ****************************************** राह ये ज़िन्दगी की आसान भी नहीं है,  किसी की ज़मीं तो किसी का आसमान नहीं है!  सफ़र तो करना चाहता है हर कोई शायद,  पर कहीं हमसफ़र नहीं है कहीं मुक़ाम नहीं है! ****************************************** यूं भी तेरी दुनियां से  प्यार हमने कर लिया,  यादों के समन्दर को तेरे नाम कर लिया!  दरिया से किनारे अब लगते हैं बहुत दूर,  दिले तूफान में मरने का इंतज़ार कर लिया!  ********************* यादें कहाँ  किसी को, कभी तन्हां छोड़ती हैं,  लाख कोशिश करो, अपनी ही तरफ़ मोड़ती हैं!   ***************************** जहां कदर नहीं वहाँ वास्ता भी रखना क्या,  जहां उम

ये बहनें

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सुनो भैया ये जो बहनें साल में एक - दो  बार चली आती है ना भाई के घर, ये कुछ लेने के लिए नहीं आती! ना ही इन्हें अपना दुख दर्द सुनाना होता है! ना ही ये अपने जीवन में, बदलाव के लिए आती हैं आपसे मिलने! बहने बहुत भोली होती है... भाई उनकी सुने ना सुने पर वो अपने भाई की बातें तसल्ली से सुनना चाहती है, फोन पर दिल नहीं भरता तो मिलने चली आती है! जब तक खुद देख ना ले कि उनका भाई बिल्कुल मजे में है, तब तक चैन नहीं पड़ता उन्हें! ये बहने कभी कुछ लेने की उम्मीद में नहीं आती, ये बस हमेशा ढ़ेर सारा प्यार लुटाने के लिए आती है! और झूठ झूठ में लड़ झगड़ कर, ले जाती हैं बहुत सी यादें साथ, ताकि अपनेपन में कोई कमी ना आए, और रिश्ता यूं ही चलता रहे! ये बहनें, कुछ लेने के लिए नहीं आती, बस अपने भाई के लिए आती है! ... Durga

बचपन की याद

टाईम कितना हो गया जरा घड़ी देख कर बताना... माँ रसोई से आवाज लगा के कहती, और हम बच्चे जवाब में कहते बड़ी सुई 12 में छोटी सुई 9 में! मतलब स्कूल को जाने का टाइम हो गया! मम्मी जल्दी जल्दी आ के हमारी चोटी बनाती! फिर हमारे स्कूल जाने के बाद घर का सारा काम निपटाती और शाम को हमारे वापस आने के बाद फिर से रसोई में व्यस्त हो जाती! कितना काम करती माँ फिर भी सब काम सही समय पर बिना हड़बड़ाहट के पूरा कर देती जैसे कि घड़ी का कंट्रोल माँ के हाथ में हो और वक़्त माँ के इशारों पर चलता हो!     मुझे घड़ी सही से देखना कब आया ये तो याद नहीं लेकिन आज भी लगता है कि मैंने सही से टाइम देखना अब भी नहीं सीखा है!

चैन से जीने नहीं देते!

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वो एहसान जो चुकाए चुक ना सकें, वो एहसास जो छुपाए छुप ना सकें, चैन से जीने नहीं देते! वो यादें जो आ के जा ना सकें, वो आदत जो चाह के भी बदली जा ना सकें, चैन से जीने नहीं देते! वो सपने जो पूरे हो ना सकें, वो अपने जो कभी दिल से अपने हो ना सकें, चैन से जीने नहीं देते! वो बातें जो समझ में आ ना सकें, वो खामोशियाँ जो कही जा ना सकें चैन से जीने नहीं देते!