ज़िन्दगी

तुझे जितना पढ़ती हूं, तू उस से ज्यादा समझाती है...
जितना लिखती हूँ, उस से ज्यादा सिखाती है...
फ़िर भी ऐ ज़िन्दगी तेरी किताब हमेशा अधूरी सी क्यूँ लगती है...

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