एक एहसास रुहानी

अचानक हुआ यूं कि तुम मिल गए, जाने कहाँ से आ गए ज़िन्दगी में मेरे.. ऐसा लगा जैसे सदियों की तलाश मुकम्मल हो गई, जैसे तुम्हारे बिन बीती सदियाँ सदियों की बात हो गई... तुम कौन हो मेरे नहीं जानती मगर कुछ था दिल का खालीपन जो अब महसूस नहीं होता,कुछ थी हवाओं से आती सदाएं जो अब नहीं सुनाई देती....... काश तू समझ पाए ये कैसा प्यार कर बैठे है हम तुझसे, ना पाने की तमन्ना ना खोने का गम...दूर रहकर भी तू मुझमें है ऐसे जैसे हमेशा से साथ था मेरे, क्या रिश्ता है तेरा मेरा जो हवाओं में बसा है,  जिसे सदियाँ सजों के रखे हुए है... क्या है ऐसा जिसका एहसास वैसा ही है जैसे दिन और रात का एक बिन्दु पे मिलना, और एक बिन्दु पे बिछड़ना ! एक सोच है तू जिसे जितना सोचूँ उतना करीब पाती हूँ... एक नज़रिया है तू जिसने सारी दुनियाँ इतनी सुन्दर बना दी जितनी छोटे बच्चे की मुस्कान या जितना सुन्दर, घने जंगल में खिला कोई फूल.. .ना कुछ कहने की इच्छा ना कुछ सुनने की चाह. .. एक प्यारा एहसास है तू सबसे जुदा, जो चला आया है साथ मेरे जाने कब से .... रूहानी इश्क़ है मेरा तुझसे... शरीर से और दुनियाँ के सारे बंधन से परे....पवित्र उतना जितना प्रकृति से धरती पे जन्मी कोई ओश की बूंद, निस्वार्थ उतना जितना सूरज और चांद के बीच रोशनी का संबंध...... जहां ना तू तू होगा ना मै मै...बस मुक्त सारे देह बंधनों से...जहां प्यार को भी बंधन नहीं माना जाता होगा ऐसी कोई दुनियां होगी..? 

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