तू और मैं

तू विशाल समन्दर सा है, अन्तहीन
मैं किसी नदी का बस एक किनारा
तू बसन्त सा खिला खिला पहाडों में
मैं पतझड़ की पगलाई धूप सी
तेरी बातें सावन की निर्मल फुहारें
मेरी बातें गर्मी की उदास दोपहरी
फिर भी मेरा वजूद तुझसे जिन्दा
और तेरा वजूद मुझसे  जिन्दा


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