प्यार का रंग

प्यार का रंग पता है तुम्हें बिल्कुल वैसा ही होता है जैसे पानी का रंग... अपना कोई रंग नहीं जो रंग डालो उसी रंग में रंग जाता है... खुद की पहचान मिटाकर ओढ़ लेता है रंगों को.....भिगो देता हैं रंगों को, और दे देता हैं उन्हें और गहराई......
प्यार की सीमा जानते हो तुम, उतनी ही असीमित है जितना धरती से आसमान.... कोई छोर नहीं इसका कोई अंत नहीं.... 
प्यार की गहराई समझते हो तुम... ये उतना ही गहरा है जितना मन, जो निरंतर सपने बुनता रहता है... जो दुनियाँ भूला देता है, जाने कितनी बातें समाई होती हैं भीतर... कितना भी गहरा उतरो मन में, मन का कोई तला महसूस ही नहीं होता... 

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