आज फिर कोई बिछड़ा मुझसे

आज फिर कोई बिछड़ा मुझसे
आज फिर कोई कह गया अलविदा
कुछ कहना चाहा, पर कुछ कह न पाई
होंठ हिलाए तो थे मैंने
पर भावनाओं को शब्द न दे पाई
हाथ उठाकर रोकना चाहा, पर रोक न पाई
आज फिर हार गई ख़ुद से
आज फिर कोई बिछड़ा मुझसे
आज फिर कोई कह गया अलविदा

आँखें देखती रही,
शिकायत करती रही
कभी जमीं तो कभी आसमान को कोसती रही
कभी सोचती जी भर के दीदार ही कर लें
जाने वाला फिर मिले न मिले
मगर कैसे देख पाती जी भर के
गुजरे वक्त की जो धुंध सी छाई थी
जिसमें अपनी दुनियां बसाई थी
आज फिर कोई बिछड़ा मुझसे
आज फिर कोई कह गया अलविदा

एक रास्ते पर चलने वाले
अब निकल पड़े दो राहों पर
न पीछे मुड़कर देखा उसने
न आवाज ही लगाई मैंने
शायद डर ही था मन में कहीं
उठे कदम उसके न रुक जाएं,
और मंजिल उसकी कहीं खो न जाए
यही ख़याल दिल में छुपाए
मैं भी फिर बेबस चलती रही
जैसे गुम हो गई हो हस्ती मेरी
आज फिर कोई बिछड़ा मुझसे
आज फिर कोई कह गया अलविदा..


Pic:Google

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