अब कोई फर्क नहीं पड़ता
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तुम मुझे जमीन लिख दो
और मेरे लिए खुद को आसमान कर दो
या फिर मुझे कोई नदी कहो
और खुद को बाहें फैलाए समंदर कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तुम मुझे कोई मंजिल कहो
और खुद को कोई रास्ता कर दो
या फिर मुझे कोई आईना कहो
और खुद को उस आईने में अक्स कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तुम मुझे मुकम्मल ग़ज़ल कहो
और खुद को उस ग़ज़ल का कोई हर्फ कर दो
मुझे चाहे कोई सुन्दर कविता लिखो
और खुद को कोई किताब कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तुम मुझे ज़िन्दगी कहो
और खुद को सांसे कर दो
या फिर मुझे उम्मीद कहो
और खुद को मेरे लिए खुदा कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
कि तुम मुझे जमीन लिख दो
और मेरे लिए खुद को आसमान कर दो
या फिर मुझे कोई नदी कहो
और खुद को बाहें फैलाए समंदर कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तुम मुझे कोई मंजिल कहो
और खुद को कोई रास्ता कर दो
या फिर मुझे कोई आईना कहो
और खुद को उस आईने में अक्स कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तुम मुझे मुकम्मल ग़ज़ल कहो
और खुद को उस ग़ज़ल का कोई हर्फ कर दो
मुझे चाहे कोई सुन्दर कविता लिखो
और खुद को कोई किताब कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
कि तुम मुझे ज़िन्दगी कहो
और खुद को सांसे कर दो
या फिर मुझे उम्मीद कहो
और खुद को मेरे लिए खुदा कर दो
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
हां फर्क पड़ता था कभी
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