अरे मन मेरे
अरे मन मेरे...
तू क्यूँ करता रहता है,
ज़िन्दगी का हिसाब किताब!
कभी जोड़ लेना चाहता है खुशियों को,
कभी चिंता ग़मों को घटाने की!
जबकि पता है,
रहना तो अंत में केवल शून्य है!
कभी तमन्नाओं को गुणा करता,
उदासियों को भाग देता कभी!
जबकि पता है,
रहना शेष तो शून्य ही है!
तू क्यूँ करता रहता है,
ज़िन्दगी का हिसाब किताब!
रोज नए समीकरण,
लागू करता ज़िन्दगी पर!
रोज पाइथागोरस प्रमेय की तरह,
ख़ुद से कहता इति सिद्धम!
तो क्या वाकई सिद्ध हो चुका?
अगर नहीं,
तो फिर क्यूँ करता रहता,
ज़िन्दगी में ये गणितीय प्रयोग!
ज़िन्दगी का गणित ये कहता है,
बस जो पल मिले वही जीवन है!
शून्य ना होकर भी शून्य रहना है,
हर हाल में नदी सा निरंतर बहना है!
शून्य से जन्मे, शून्य में ही जाना है
फिर क्यूँ जीवन भर,
शून्य हो जाने से ही डरना है!
शून्य में आनंद,
एहसासों का शून्य हो जाना है!
फिर शून्य हो जाने से भागना,
क्या ख़ुद से भागना नहीं?
... Durga
तू क्यूँ करता रहता है,
ज़िन्दगी का हिसाब किताब!
कभी जोड़ लेना चाहता है खुशियों को,
कभी चिंता ग़मों को घटाने की!
जबकि पता है,
रहना तो अंत में केवल शून्य है!
कभी तमन्नाओं को गुणा करता,
उदासियों को भाग देता कभी!
जबकि पता है,
रहना शेष तो शून्य ही है!
तू क्यूँ करता रहता है,
ज़िन्दगी का हिसाब किताब!
रोज नए समीकरण,
लागू करता ज़िन्दगी पर!
रोज पाइथागोरस प्रमेय की तरह,
ख़ुद से कहता इति सिद्धम!
तो क्या वाकई सिद्ध हो चुका?
अगर नहीं,
तो फिर क्यूँ करता रहता,
ज़िन्दगी में ये गणितीय प्रयोग!
ज़िन्दगी का गणित ये कहता है,
बस जो पल मिले वही जीवन है!
शून्य ना होकर भी शून्य रहना है,
हर हाल में नदी सा निरंतर बहना है!
शून्य से जन्मे, शून्य में ही जाना है
फिर क्यूँ जीवन भर,
शून्य हो जाने से ही डरना है!
शून्य में आनंद,
एहसासों का शून्य हो जाना है!
फिर शून्य हो जाने से भागना,
क्या ख़ुद से भागना नहीं?
... Durga
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