बचपना जिंदा रखिए
हम जो जानते हैं वो मानते नही, जो मानते हैं उसे जानते नहीं और ना ही जानने की कोशिश करते है। इसी जानने और मानने के अंतर ने ही सारा बवाल किया रहता है।
अक्सर बच्चे हमेशा कोई भी चीज़ देख कर कई सवाल करने लगते हैं क्यूँकि वो उसे जानना चाहते हैं, बिना जाने अपनाने को उनका मन नहीं मानता। उनके लिए वही सच है जो हम उन्हें बताते है, अब ये हम पर निर्भर करता है कि उनकी बातों पर ध्यान दें और सही जवाब दें या फिर उनके सवालों को अनसुना कर दें और उनको भी अपनी तरह उलझन में रहने दें।
बड़ों की दुनियाँ में सब बातें बड़ी हो जाती हैं। हम ऐसे सोचते हैं जैसे कि हम सब जानते हैं और कुछ समझने को बचा ही नहीं। हम जो सोच लेते हैं, जो जानते हैं उसके झूठ होने को स्वीकार आसानी से नहीं कर पाते। कहीं हमें कोई और ये ना कह दे कि आप गलत हो, हम गलत होने से डरते हैं। हम गलत होने को अपनी हार समझ लेते हैं इसलिए हम ना सवाल करते हैं ना जवाब देते हैं। हम गलतफ़ह्मी में जीने के आदी हो जाते हैं और आस पास रच देते हैं नकली दुनियाँ।
आप अब भी नहीं मानते ना... यकीन कीजिए हम ज्यादा ही बड़े हो गए हैं, दिल में कहीं कुछ तो बचपना ज़िंदा रखिए कि सवाल कर पाएं और जवाब दे पाएं।
अक्सर बच्चे हमेशा कोई भी चीज़ देख कर कई सवाल करने लगते हैं क्यूँकि वो उसे जानना चाहते हैं, बिना जाने अपनाने को उनका मन नहीं मानता। उनके लिए वही सच है जो हम उन्हें बताते है, अब ये हम पर निर्भर करता है कि उनकी बातों पर ध्यान दें और सही जवाब दें या फिर उनके सवालों को अनसुना कर दें और उनको भी अपनी तरह उलझन में रहने दें।
बड़ों की दुनियाँ में सब बातें बड़ी हो जाती हैं। हम ऐसे सोचते हैं जैसे कि हम सब जानते हैं और कुछ समझने को बचा ही नहीं। हम जो सोच लेते हैं, जो जानते हैं उसके झूठ होने को स्वीकार आसानी से नहीं कर पाते। कहीं हमें कोई और ये ना कह दे कि आप गलत हो, हम गलत होने से डरते हैं। हम गलत होने को अपनी हार समझ लेते हैं इसलिए हम ना सवाल करते हैं ना जवाब देते हैं। हम गलतफ़ह्मी में जीने के आदी हो जाते हैं और आस पास रच देते हैं नकली दुनियाँ।
आप अब भी नहीं मानते ना... यकीन कीजिए हम ज्यादा ही बड़े हो गए हैं, दिल में कहीं कुछ तो बचपना ज़िंदा रखिए कि सवाल कर पाएं और जवाब दे पाएं।
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