बचपन अपना
सुबह सवेरे उठ जाना
उठकर खूब धूम मचाना
साथी मिले जो कोई अपना
थोड़ा हंसना थोड़ा हंसाना
मस्ती की बारिश में भीगना
सारे घर में दौड़ लगाना
क्या अजब था वो जमाना
कहते हैं जिसको बचपन अपना
खुश होकर पढ़ने जाना
थोड़ा पढ़ना थोड़ा लड़ना
लौट फिर घर को आना
सबको दिन की बात बताना
शाम हुई तो खेलना कूदना
फिर दादी से कहानियाँ सुनना
क्या अजब था वो जमाना
कहते हैं जिसको बचपन अपना
बिना बात के रूठ जाना
फिर अगले ही पल मान जाना
न किसी की चिंता करना
अपने में ही खोए रहना
तितलियों के पीछे जाना
पंछियों से बातें करना
क्या अजब था वो जमाना
कहते हैं जिसको बचपन अपना
जीवन लगता है एक सपना
जाने कब बीत गया बचपन अपना
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