कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद हैं मुझे!
नहीं होती उनमें,
कहानियों की तरह,
लंबी लंबी भूमिकाएं!
कहीं से भी आरंभ हो सकती है,
और कहीं पर भी समाप्त!
जैसे जीवन होता है!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद हैं मुझे!
इनमें नहीं होती बंदिसें,
नहीं जोड़ने पड़ते,
बेवजह के पाठ!
ये निर्भर नहीं
सम्पूर्ण है!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद है मुझे!
ना सुखांत चाहती ये,
ना दुखांत की चिंता!
अपने आप में,
हर रूप में,
हर पंक्ति,
लगती सार्थक सी!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद हैं मुझे ,
विस्तृत का मोह नहीं,
संक्षेप में भी दोष नहीं!
अर्थहीन कुछ भी नहीं,
विराम सही,
फिर भी निरंतरता!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद हैं मुझे !
चाहे कविता का ज्ञान नहीं,
क्या लिखती,
इसका भी ध्यान नहीं!
शब्द भले ही मौन हों,
किन्तु संवाद मन तक पहुंचे!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं !
... Durga
नहीं होती उनमें,
कहानियों की तरह,
लंबी लंबी भूमिकाएं!
कहीं से भी आरंभ हो सकती है,
और कहीं पर भी समाप्त!
जैसे जीवन होता है!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद हैं मुझे!
इनमें नहीं होती बंदिसें,
नहीं जोड़ने पड़ते,
बेवजह के पाठ!
ये निर्भर नहीं
सम्पूर्ण है!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद है मुझे!
ना सुखांत चाहती ये,
ना दुखांत की चिंता!
अपने आप में,
हर रूप में,
हर पंक्ति,
लगती सार्थक सी!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद हैं मुझे ,
विस्तृत का मोह नहीं,
संक्षेप में भी दोष नहीं!
अर्थहीन कुछ भी नहीं,
विराम सही,
फिर भी निरंतरता!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं!
कविताएँ पसंद हैं मुझे !
चाहे कविता का ज्ञान नहीं,
क्या लिखती,
इसका भी ध्यान नहीं!
शब्द भले ही मौन हों,
किन्तु संवाद मन तक पहुंचे!
हां ऐसी ही,
कविता बन जाना चाहती हूं मैं !
... Durga
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