सरहद पार वाला दुश्मन

सरहद पार वाला दुश्मन,
कायर, कमजोर बहुत है वो!

इतरा के गफ़लत में यूँ ही,
कुछ भी बोल रहा वो!

सामना हक़ीक़त का करे कैसे,
यही बस दिन रात सोच रहा है वो!

शायद इसलिए ही वर्षों से,
सपनों में ही खुश हो रहा है वो!

युद्ध भूमि बच्चों का खिलवाड़ नहीं,
ये भी बखूबी जानता है वो!

इसलिए दो कदम आगे रखता,
चार कदम पीछे भागता है वो!

जब भी हिंद के शेरों से पड़ जाता पाला,
तब-तब रात-रात भर रोता रहता है वो!

अपनी रोनी नापाक सूरत को फिर भी,
दूध का धुला पाक कहता है वो! 

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