वो गरीब

वो रोज बिखरे जीवन को समेट,
उम्मीद की नाव पर चढ़,
मेहनत के चप्पू थामे,
घर से निकलता है!

वो रोज थकता, हारता,
किस्मत से दो दो हाथ करता,
उम्र को पीछे छोड़,
बहुत दूर निकल जाता है!

वो रोज लहरों से जूझता,
तूफानों से उलझता,
सुबह से शाम,
शाम से सुबह,
बस सफ़र करता,
मंजिल तक नहीं पहुंचता है!

वो एक "गरीब"
उसका सफर,
एक सपने से,
दूसरे सपने तक,
बस!

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